एक दिन खोली,
फिज़िक्स की बुक,
तो,
सहसा,
माथा थनका,
समझा,
जाना,
कि
मैं गैस नही हूँ|
खुजलाया दिमाग़,
खुद से पूछा,
मैं ब्रौनियन मोशन क्यों करता हूँ?
इधर उधर
ख्यालों मे क्यों भागता हूँ?
लोगों के प्रेशर वॉल्यूम और टेंपरेचर से
खुद को क्यों नापता हूँ?
फिर दिमाग़ थनका,
यूरेका मोमेंट का ख्याल निकला,
अरे! मैं तो सॉलिड हूँ!
मेरा तो अपना शेप , साइज़ और स्ट्रेंथ है |
तो
मैं अपना स्ट्रेंथ क्यों नही पहचानता हूँ?
बुक पढा, संदीप महाश्वरी सुना,
'द टॅलेंट कोड' पूरा रट डाला ,
फिर दिमाग़ ठनका,
समझ आया,
लक्ष्य के बिना स्ट्रेंथ अधूरा होता है,
पहला कदम ही सबसे मुश्किल होता है,
शंकाओ से मन हमेशा भरा रहता है,
पर फिर भी उसपे चलना होता है,
जिंदगी जीने के लिए,
जिंदगी मे लक्ष्य बहुत ज़रूरी होता है |
Monday, August 1, 2022
लक्ष्य और मैं
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