हे रे सखी,
क्या तूने अपना लक्ष्य जाना,
कभी ऊपर कभी नीचे,
चहकती है मोरनी जैसी
कभी इधर कभी उधर,
मिलती कभी इस डाल से,
तो कभी जाती उस डाल पे,
जाना कॅन्हा है तुझे,
क्या तूने कभी जाना,
थोड़ा तू विश्राम कर,
स्वयं से तू बात कर,
खुद से अपनी पहचान कर,
संघर्ष से ना कर नफ़रत,
खुद से वार्तालाप कर,
ख़ालीपन जीवन का,
बहुत घचोटता है,
बाहर नही कोई अपना,
हर कोई छलता है,
तू बन खुद का सहारा,
खुद से खुद का सम्मान कर,
लक्ष्य पर चल तू हो अडिग,
खुद की जिंदगी का मान कर.
बहुत घचोटता है,
बाहर नही कोई अपना,
हर कोई छलता है,
तू बन खुद का सहारा,
खुद से खुद का सम्मान कर,
लक्ष्य पर चल तू हो अडिग,
खुद की जिंदगी का मान कर.
हे रे सखी,
मेरी बात पे तू थोड़ा विचार कर,
अब भी है समय बाकी,
तू थोड़ा तो ख्याल कर.
अब भी है समय बाकी,
तू थोड़ा तो ख्याल कर.
No comments:
Post a Comment